July 30, 2012

बरसते क्यों नहीं?

२४ जुलाई

हरामखोर बादलो!
अब गरजना मत
रोज़ आसमान में देखता हूँ
अस्त-व्यस्त बिखरे रहते हो
जैसे क्षत-विक्षत लाशें.

नामुरादों,
मार्ग में ज्यादा गतिरोधक हैं!
दिशा भ्रम हो गया है!!
या वहाँ भी कर्फ्यू है!!!
बरसते क्यों नहीं?

तनिक सूरज को देखो
और ज्यादा उग्र हो चला है
पसीना बाँट रहा है
सुना क्या, अब तो बरस...

पथरायी आँखों में
खुबे इन्द्रधनुष भी नहीं दीखते क्या?
सूखे की आहट सबने सुन ली
तुमने सुना
मौत घात लगाये बैठी है
लेकिन बहाना वही क़र्ज़ होगा.
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अभागा दरख़्त

२० जुलाई

दफ्तर के सामने खड़े ठूंठ दरख़्त पर
बरबस निगाह ठहर जाती है
आसपास के पेड़ों पर किसलय
आह! यह कितना अभागा?

हरा- भरा था तब पथिकों को पनाह देता रहा
झुलसे बदन को ठंढक देता रहा
अपने शाखों पर न जाने कितने परिंदों को आश्रय दिए
सूख चुका, फिर भी उसी दर्प से खड़ा है.

इसमें जीवन नहीं है
फिर भी कुछ जीवों का घर है
इस आस में कि जलना है किसी रोज़
किसी दरिद्र नारायण के चूल्हे में
अब भी मौसम की क्रूरता सहता है.

किन्तु सरकार की ईमान इसकी इच्छापूर्ति नहीं होने देगी
जानते हुए... मर चुका है, दरिद्र के घर जलने नहीं देगी.

क्षणिकाएं

५ जुलाई

बहुत मुश्किल है जीना
यहाँ तो पत्थर भी पूजे जाते हैं.
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८ जुलाई

सुबह से ही आसमान में
पर्वतों का डेरा है
आज फिर किसी ग़म ने घेरा है...
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तन भीगा, मन भी भीगने देते
रात पड़ी थी, प्यास बड़ी थी
मेह तनिक और रिसने देते...
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मैं वही हूँ
वहीँ हूँ, जहां से
वर्तमान अतीत बन गया...
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२१ जुलाई

सरकार की कामचोर नीतियों का असर दिख रहा है
रुपहले परदे पर भी बॉडी से प्राण निकल रहा है...
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सोनिया जी सोनिया जी एक काम कीजिये
अपने दिमाग को आराम और बेटे को दूसरा काम दीजिये...
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तुमसे क्या शिकवा गिला करें
तुम्हें तो बैठाया ही था सर आँखों पर
नींद हराम करने के लिए.
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२२ जुलाई

यूपीए कब तक खैर मनायेगा
गठबंधन को टूटने से बचाने
अब कोई प्रणब नहीं आएगा.
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२३ जुलाई
यूपी में प्रगति पर है अखिलेश का काम
बदल दिए गए फिर आठ जिलों के नाम.
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क्या तब भी तुम पूजे जाओगे?


६ जुलाई

विधाता! सुना तुमने
इंसानों ने खोज लिया
वह कण
... किन्तु तुम
उसमें भी नहीं मिले!
अस्तित्व से पर्दा उठेगा
उत्पत्ति का रहस्य भी खुलेगा
एक प्रश्न...
क्या तब भी तुम पूजे जाओगे?
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निकल गयी अकड़!

३ जुलाई

देखा! मैंने कहा था न
एक दिन पर्वत जब
निकलेंगे आखेट पर
तुम्हें निचोड़ देंगे भानु!

आज तू उदित होते हुए भी
अस्ताचल में छिपा है
तेरी रश्मियाँ भी साथ छोड़ गयीं
आखिर तेरी अकड़ निकाल ही दी!
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