January 2, 2008

19. परछाइयाँ

क्यों पीछा करती हैं

ये परछाइयां

कभी उजाले में भटक कर

बिखर जाती हैं

कभी स्याह रातों में
गुम हो जाती हैं

किन्तु...

सदैव इर्द-गिर्द ही

रेंगती हैं परछाइयां

कभी आगे

...कभी पीछे!

कितने यत्न किये

नहीं छोड़ती पीछा।
मन आशंकित
स्वयम से ही सशंकित
पूछें तो किससे
आखिर क्यों पीछा करती हैं
ये परछाइयां।

18. मुझे मत जोड़ना...

अगर में टूट जाऊँ
मुझे मत जोड़ना
अगर में खो जाऊँ
मुझे मत ढूंढ़ना
...इन चलती-फिरती लाशों में;
क्योंकि तब
में वहाँ नहीं
कहीं और जा चुका होऊंगा!
जब कभी आये मेरी याद
नयनों से अश्क नहीं
बगिया से कोई फूल नहीं
मरघट से सन्नाटा ले आना...
में वहीं मिलूंगा
बस ...
इन अधरों से आहिस्ता पुकारना।

17. अजीब शहर

यह शहर बड़ा अजीब है
यहाँ के लोग
लक्ष्मी के करीब हैं,
कुबेर इनके अर्दली
और पाप इनके मित्र हैं।

यह शहर अँधा है
मत पूछो
स्याह शीशे के पीछे
क्या गोरखधंधा है।

यह शहर
अपनी समृध्धि पर अकड़ता है
दो बूँद नीर के लिए
पड़ोसियों की अनुकम्पा पर पलता है।

जनाब यह दिल्ली है
जाने किसने
यहाँ के लोगों की
मानवता छीन ली है।

यहाँ के लोग
अब बदल गए हैं
क्यों न बदलें
धनकुबेर जो बन गए हैं!

मुक्तक

13. गुमान

हिटलरी गुमान में
ऐंठ रहा अंग्रेज,
मनमानी है कर रहा
अंदर का चंगेज़।

14. वे तो लाये गए थे
वे जलसे में आये नहीं थे
जबरदस्ती बुलाए गए थे
ट्रकों, बसों और ट्रालियों में
भरकर लाये गए थे।

15. कब आओगे?
छिपे हो कहाँ
कब आओगे?
तुम्हारे आगमन की
बाट जोहती आंखें
थक जाएँगी
क्या तब आओगे?

16. इन्हें कैसे संभालें...
कभी खुद को
कभी इनको
और किस-किस को संभालें
दरक रहे हैं जो रिश्ते
उन्हें कैसे संभालें।
अनपढ़ नहीं...
इन पढे-लिखों को
कैसे संभालें..

मुक्तक