मन कहता है
कुछ अच्छा होगा
ये जो विश्वास है
और पक्का होगा
अतीत से निकल आया हूँ
यह सोचकर
अब शायद कुछ अच्छा होगा।
October 15, 2009
36. कह देना सरोकार नही
क्या कहोगी
जब पूछेंगी बहारें
कौन आता है
ख़्वाबों में तुम्हारे?
कह देना
वक्त का मारा कोई मुसाफिर था
राह भटका एक राही था
मैं उसकी पैरोकार नहीं
उस से मेरा सरोकार नहीं।
जब पूछेंगी बहारें
कौन आता है
ख़्वाबों में तुम्हारे?
कह देना
वक्त का मारा कोई मुसाफिर था
राह भटका एक राही था
मैं उसकी पैरोकार नहीं
उस से मेरा सरोकार नहीं।
35. पतझड़ की पगलाई धूप
कभी दुबक बादल में छिप जाती
कभी सिर चढ़ आती है
पतझड़ की पगलाई धूप
पसीने में नहला जाती है।
सावन, भादो
बादल में छिप जाती
आश्विन, कार्तिक
मद्धम पड़ जाती
फ़िर भटकी तो तीन मॉस तक
नज़र न आती
निकले तो पगलाती है।
कभी सिर चढ़ आती है
पतझड़ की पगलाई धूप
पसीने में नहला जाती है।
सावन, भादो
बादल में छिप जाती
आश्विन, कार्तिक
मद्धम पड़ जाती
फ़िर भटकी तो तीन मॉस तक
नज़र न आती
निकले तो पगलाती है।
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