लब खामोश हैं
पर लहू अब भी
रह रह कर बग़ावत करता है
धडकनों की शिकायत
रात भर सोने नहीं देतीं...
मन उलझाता है
दिमाग को व्यस्त रखने के लिए
काम दे जाता है!
स्मृतियों में हर दिन बस
एक ही छवि उभरती है
कभी धुंधली
कभी मुखर.
हर रात फैसले की रात होती है
और हर दिन पस्त!
अनमनस्क मन
शरीर को बेजान कर जाता है
जैसे लहू निचुड़ जाता है
हर अंग के अपने-अपने किस्से
और मेरे हिस्से ...
सबके दिए घाव.
पर लहू अब भी
रह रह कर बग़ावत करता है
धडकनों की शिकायत
रात भर सोने नहीं देतीं...
मन उलझाता है
दिमाग को व्यस्त रखने के लिए
काम दे जाता है!
स्मृतियों में हर दिन बस
एक ही छवि उभरती है
कभी धुंधली
कभी मुखर.
हर रात फैसले की रात होती है
और हर दिन पस्त!
अनमनस्क मन
शरीर को बेजान कर जाता है
जैसे लहू निचुड़ जाता है
हर अंग के अपने-अपने किस्से
और मेरे हिस्से ...
सबके दिए घाव.