अरी कोयल!
घर के पीछे वाले
गुलमोहर की डाल पर आकर बैठ
कोई गीत सुना
ऐसी तान कोई छेड़
रोम रोम खिल उठे...
ओ बया!
तुम तो अब दिखती ही नही
अपना हुनर
मुझे भी सिखा दो
अहा!
इतना सुंदर घोंसला है!!
बुलबुल तुझे तो
बचपन के बाद देखा ही नहीं
तब एक पिंजरा होता था तुम्हारा घर
पिताजी बैठ तुमसे घंटों बतियाते
गीत कोई सिखाते
क्या तुमने
वह गीत किसी को सिखाया भी?
और मेरे मिट्ठू मियाँ!
तुम तो धोखेबाज निकले
तुम्हें तो कभी
पिंजरे में नहीं रखा
हमेशा खुला छोड़ा
फ़िर क्यों, क्यों भागे?
पूरा ज्ञान पा लिया था क्या?
गौरैये कभी-कभी
अब भी आती हैं दाना चुगने
घर के ओसारे में
बाकि सब तो जैसे
भूल ही गए रास्ता
कहाँ ढूंढूं इन्हें?
काक भुशुण्डी
तुम तो अक्सर
छत के मुंडेर से
अतिथि आगमन का संदेश लाते थे
तुम भी नहीं आते अब
उनका संदेश
कौन देगा मुझे
इस बियाबान में!