ढाई सेर अनाज
तुम्बा भर शराब
चिल्ल-पों से दूर-
एक हम
एक तुम...
खूब पीयेंगे।
बच्चन की मधुशाला
मदिरा की हाला न सही
चुक्करों में ही उड़ेलेंगे
किन्तु, तुम्बा भर शराब पीयेंगे।
धमनियों में
लहू नहीं
मदिरा दौड़ेगी
ह्रदय की हूक
सुनेगा कौन?
जब तुम्बा भर शराब
सिर चढ़कर बोलेगी
इन घुच्च आंखों का रहस्य खोलेगी!
हलक सूखेगा ....
चुक्करों में मानवता तब
नीर नहीं
तुम्बा भर शराब उड़ेलेगी!
धुंध छंटेगा
भ्रम मिटेगा
तन डोलेगा
झूमेंगे मतवाले
जब लहू में
मदिरा दौड़ेगी
इन पुतलियों की भाषा
तुम्बा भर शराब ही बोलेगी!!
December 30, 2007
8. मेरा भारत महान!!!
लाल किले की प्राचीर से
गुन्जेगा पुनः वही जयघोष
गुंजायमान होगा देश।
हम याद करेंगे
चंद शहीदों की कुर्बानी!
क्षणमात्र को बंधेगा
एक सूत्र में
पुनः मेरा भारत महान!!
परन्तु ...
परस्पर वैमनस्य से रक्तरंजित
धरा की बदहाली पर
जब रोयेगा नभ
औ" बरसेगा मेघ
मुश्किल होगा कहना तब
कितनों ने आंखों में
अश्रु भरे कितनों ने पानी!!!
गुन्जेगा पुनः वही जयघोष
गुंजायमान होगा देश।
हम याद करेंगे
चंद शहीदों की कुर्बानी!
क्षणमात्र को बंधेगा
एक सूत्र में
पुनः मेरा भारत महान!!
परन्तु ...
परस्पर वैमनस्य से रक्तरंजित
धरा की बदहाली पर
जब रोयेगा नभ
औ" बरसेगा मेघ
मुश्किल होगा कहना तब
कितनों ने आंखों में
अश्रु भरे कितनों ने पानी!!!
7. समय
दिवस बीते,
मास, बरस भी अब।
समय का सफर रुका कब?
तुमने देखा
कारवाँ बारह मासों का!
इन दिनो में उड़ता रहा
संगमरमरी ख्वाबों के पर लगाये
हेम आकाश की ऊँचाइयों में
भटकता रहा धरातल की गहराइयों में
समय मिला नहीं!!
अनंत ठहरावों के बीच
जमीं आंखें
उन अविस्मरनीय पलों को ढूँढती
मुझसे बीते कल लाने को कहती!
अब तुम्हीं बताओ ...
तुम्हारे साथ व्यतीत पल
वापस कैसे लाऊँ?
ह्रदय की गहराइयों में
अतीत की बूँद-बूँद
बरसती असमय बौछारें
ऐसे नें तुम्हारी अनुपस्थिति ...
कहो न!
क्या यह संभव है?
जैसे भी हो ...
वो पल लौटा दो
मेरा कल लौटा दो...
मास, बरस भी अब।
समय का सफर रुका कब?
तुमने देखा
कारवाँ बारह मासों का!
इन दिनो में उड़ता रहा
संगमरमरी ख्वाबों के पर लगाये
हेम आकाश की ऊँचाइयों में
भटकता रहा धरातल की गहराइयों में
समय मिला नहीं!!
अनंत ठहरावों के बीच
जमीं आंखें
उन अविस्मरनीय पलों को ढूँढती
मुझसे बीते कल लाने को कहती!
अब तुम्हीं बताओ ...
तुम्हारे साथ व्यतीत पल
वापस कैसे लाऊँ?
ह्रदय की गहराइयों में
अतीत की बूँद-बूँद
बरसती असमय बौछारें
ऐसे नें तुम्हारी अनुपस्थिति ...
कहो न!
क्या यह संभव है?
जैसे भी हो ...
वो पल लौटा दो
मेरा कल लौटा दो...
6. खामोशी
मन की गहराइयों में
निरंतर एक खामोशी
चक्कर कटती रहती है
हर वक्त
एक भय-सा छाया रहता है
मन-मष्तिष्क पर।
आशंकित स्वयं से ही जूझता
लगातार डर को
तोड़ने की कोशिश में
थक-सा गया हूँ।
कोई तो होता
जिसके कंधे पर सिर रखकर
कुछ पलों के लिए
उसके अक्स में विलीन हो
मधुर प्रेम की स्मृतियों को
अपनी बाँहों में समेटता।
उसके समक्ष मनोभावों को रखता
और वह पूरे
मनोयोग से मेरा समर्थन करता!
निरंतर एक खामोशी
चक्कर कटती रहती है
हर वक्त
एक भय-सा छाया रहता है
मन-मष्तिष्क पर।
आशंकित स्वयं से ही जूझता
लगातार डर को
तोड़ने की कोशिश में
थक-सा गया हूँ।
कोई तो होता
जिसके कंधे पर सिर रखकर
कुछ पलों के लिए
उसके अक्स में विलीन हो
मधुर प्रेम की स्मृतियों को
अपनी बाँहों में समेटता।
उसके समक्ष मनोभावों को रखता
और वह पूरे
मनोयोग से मेरा समर्थन करता!
5. जयहिन्द...
झुका सके हमें
है ज़माने में दम नहीं
आजमा ले कोई
हम भी किसी से कम नहीं।
यह हिंद है-
कितने ही वीरों ने यहाँ
अपने प्राणों की आहुति दी
गांधी ने आजादी दी।
पर अफ़सोस!
आजादी के इस शोर में
कहीं दब कर-कहीं घुट कर
रह गया, नारा वो
जयहिंद का!
है ज़माने में दम नहीं
आजमा ले कोई
हम भी किसी से कम नहीं।
यह हिंद है-
कितने ही वीरों ने यहाँ
अपने प्राणों की आहुति दी
गांधी ने आजादी दी।
पर अफ़सोस!
आजादी के इस शोर में
कहीं दब कर-कहीं घुट कर
रह गया, नारा वो
जयहिंद का!
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