January 29, 2012

आत्मा से साक्षात्कार

कल रात आत्मा ने देह से कहा-
इस नश्वर काया से मुक्ति चाहती हूँ
इसलिए देह छोड़कर जा रही हूँ.
शरीर सहम गया
उसे प्रलोभन देने लगा
बोला- देखो!
मेरा शारीरिक सौष्ठव
इन बलिष्ठ भुजाओं को देखो
चौड़ी छाती और मेरा रूप देखो
मुझसे ही तो तुम्हारी पहचान है!
आत्मा मुस्कुराई
शायद देह के भीतर पल रहे डर को पढ़ लिया.
कहा- मैं न आती तो ये रूप कैसे पाते?
इतनी अकड़ कैसे दिखाते?
तुम्हारा शरीर अब मेरे लिए पुराना हो गया
मुझे नए लक्ष्य को प्राप्त करना है
इस देह का त्याग कर के
नए देह में जाना है.
न तो तुम
और न तुम्हारा मन ही पवित्र रहा
इसमें छल है, प्रपंच है
एक आसक्ति है
तुम्हारा जीवन ही आडम्बर है
मुझे यहाँ घुटन होती है.
शरीर पसीने पसीने
घबराया हुआ
कांपते हाथ-पैर
और फडफडाते अधर
किसी में तालमेल नहीं
आत्मा से साक्षात्कार के बाद शरीर
घबरा गया.
आत्मा ने उसे मोहलत दी है
अगली पूर्णमासी को
वह इस देह को छोड़ देगी.
शरीर चिंता में है
कोई विकल्प नहीं
बस इश्वर से
चमत्कार की उम्मीद कर रहा है.
हा हा हा हा
इसे कौन समझाए
कलयुग में चमत्कार नहीं होते!

क्षणिकाएं

पत्थर के खुदा, पत्थर के सनम
लो पटक दिया सर, निकल गया दम.
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स्मृतियों के दुरूह अरण्य में
अपरिणीता कहाँ से आई!
समर्पिता बाँहों के
कितनी सौगातें लाई?
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विधाता! तेरे फैसले बड़े सख्त हैं
पर उससे भी सख्त
तेरी दी ये जान है.
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रब्बा! ये रूह पनाह मांगती है
और ज़िन्दगी
हर पल का हिसाब मांगती है.

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दन्त हीन वृद्ध
विष हीन नख
घर में एक पतोहू
रात-दिन चख-चख...

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माँ! मुझे जनते ही तुमने
थोड़ा नमक क्यों नहीं चखाया?
 तुम्हारे ही कुल की हूँ
पर कुल दीपक क्यों नहीं?