२४ जुलाई
हरामखोर बादलो!
अब गरजना मत
रोज़ आसमान में देखता हूँ
अस्त-व्यस्त बिखरे रहते हो
जैसे क्षत-विक्षत लाशें.
नामुरादों,
मार्ग में ज्यादा गतिरोधक हैं!
दिशा भ्रम हो गया है!!
या वहाँ भी कर्फ्यू है!!!
बरसते क्यों नहीं?
तनिक सूरज को देखो
और ज्यादा उग्र हो चला है
पसीना बाँट रहा है
सुना क्या, अब तो बरस...
पथरायी आँखों में
खुबे इन्द्रधनुष भी नहीं दीखते क्या?
सूखे की आहट सबने सुन ली
तुमने सुना
मौत घात लगाये बैठी है
लेकिन बहाना वही क़र्ज़ होगा.
..................................................
हरामखोर बादलो!
अब गरजना मत
रोज़ आसमान में देखता हूँ
अस्त-व्यस्त बिखरे रहते हो
जैसे क्षत-विक्षत लाशें.
नामुरादों,
मार्ग में ज्यादा गतिरोधक हैं!
दिशा भ्रम हो गया है!!
या वहाँ भी कर्फ्यू है!!!
बरसते क्यों नहीं?
तनिक सूरज को देखो
और ज्यादा उग्र हो चला है
पसीना बाँट रहा है
सुना क्या, अब तो बरस...
पथरायी आँखों में
खुबे इन्द्रधनुष भी नहीं दीखते क्या?
सूखे की आहट सबने सुन ली
तुमने सुना
मौत घात लगाये बैठी है
लेकिन बहाना वही क़र्ज़ होगा.
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