October 27, 2009

43. वाह! विधाता

एक प्रेम अनुमानित
दूजा प्रेम सघन मौन!
दो ह्रदय मिलन को प्यासे
लेकिन पहल करे कौन??
वाह! विधाता
अजब यह खेल रचा
एक आकृति मस्तक पर खींच
हाथ से दी रेखा मिटा !!

42. अधरों से कुछ तो फूटे

कुसुम कोमल
यह रूप धवल
प्यासे अधर 
मनमीत विकल.
व्याकुल नयना
राह तके
हर दिन मन में
इक आस जगे.
स्मृतियों में चलचित्र
मधुर मिलन की
पूर्व की स्मृतियाँ ओझल.
पर यह चुप्पी तो टूटे
अधरों से कुछ तो फूटे....

41. कई बार देखा है

कई बार तुम्हें अपने पास
मंडराते देखा है
गुमसुम सी
कहीं खोई सी
आती हो
पर कुछ नहीं कह पाती हो!
द्विविधा में डूबी
निराशा के गर्त में खोई
कहाँ जाना चाहती हो?
मुझमें कुछ पाने की आशा से आती हो
तब ज़रूर मिलेगा
कभी कोई खाली नहीं लौटा.
तुम्हें भी मिलेगा.
थोड़ा धीरज
थोड़ी आस्था तो रखना ही होगा.
कुछ पाना है तो
रास्ता भी ढूँढना होगा.
और कुछ न सही 
मुझसे थोड़ा सुकून
थोड़ी शांति ज़रूर मिलेगी.
इस बार आना तो
थोड़ा वक़्त देना
मेरे पास बैठना
मन की बात कहना.
अपने दुःख मुझे सौंप देना
मुझसे ढेरों खुशियाँ ले जाना.
और कुछ चाहिए तो
वह भी बता देना
मन करे तो अपनापन भी जता देना.

40.. हालाहल पीता हूँ

मुझमें मौज फ़क़ीर सी
मस्ती में रहता हूँ
छोड़कर अमृत कलश
हालाहल पीता हू.

39. मुझसे क्या चाहिए?

मुझसे क्या चाहिए?
एक बार कह कर तो देखो
एक यकीन कर के देखो
खुशियों की तलाश में
मुझ तक आती हो
...लेकिन मुझे ही
आहत कर जाती हो.
मुझसे क्या चाहिए?
कहो तो सही...
दो दिन हुए
ह्रदय पर आघात झेलते
पथराई आँखों में
अश्रु तैरते हैं
पर ये भी नहीं निकलते
तुम्हारी यादों कि तरह
अन्दर ही रहना चाहते हैं
मुझसे क्या चाहिए?
एक बार खुद से पूछो
मैं भी खुद से पूछता हूँ
ह्रदय पर
हथौड़े की चोट
और आँखों में अश्क
क्यों लिए घूमता हूँ?
पहले यही दर्द
मेरे होने का
एहसास करते थे
अब ये भी कलेजा दुखाते हैं.
समझ नहीं आता
किसे क्या चाहिए?
मुझे सुकून कि
किसी को मेरा सुकून!