January 30, 2016

दर्द

कुछ ताज़ा बूँदों की गरमाहट
महसूस हुई बाऍं कंधे पर
फिर गले के गिर्द, जड़ों में
ठण्डेपन का अहसास हुआ
जैसे भीगे नयनों ने कुछ कहा
और आसुओं की मासूम बूँदों ने 
चुपचाप आस्तीन में छिपना चाहा
सिसकियां गले की चारदीवारी में
ख़ामोशी से टूटती प्रतीत हुईं

थोड़ा ऊपर कान के पास
सांसों की तेज और मद्धम
आवाजाही से अंतस्थ दबी
बेचैनियों की अनुभूति हुई
जैसे दर्द अब कै़द से
रिहाई चाह रहा हो
किन्तु सज़ा शायद शेष है
और इसे तब तक सहना लाचारी है