हो कौन तुम अरुणिम उषा सी
स्मृतियों में बन मेह
बरसने आयी.
यह किसके ताप से
घनीभूत पीड़ा मस्तक की
अश्रु बन
नैनों से आज बहने आयी
कहो ये अमराई किसकी
बूँद-बूँद पीता हूँ
हरपल उसकी यादों में जीता हूँ।
कहो सखी तुम कौन
मुझसे प्रीत तो सच्ची है?
यकीन नहीं होता हिस्से की
खुशी अभी बची है ...