February 16, 2014

नारी

कभी मेरे,
कभी उनके,
घर की ज़रुरत सी रह
भोर से रात ढले
जांते में पिसती रह
हाय री! अबला सी
तू मत रह
नारी है,
नारी सी रह! 

बंदर के हाथ कपड़े

कपड़े सूखने डाल कर 'बाबा' रहे पछताए
आधी रात बंदर को कपड़ों से जूझते पाए।

वानर जाति अति दुष्‍ट है, कीजिये न इस पर वार
गुस्‍से में आ जाए तो देगा बुश्‍शर्ट फाड़।।

तीन बुश्‍शर्ट फड़वा कर लिया सबक यह सीख
वानर जब दिख जाए तो निकालिए न अपनी खीझ।

संसद में हंगामा

गोल घर में कांड कर गए
राजनीति के भांड! 
लोकतंत्र में दौड़ रहे हैं
कैसे छुट्टा सांड!
जनता की आँखों में अब तक 
जो झोंक रहे थे धूल
चक्कूबाज़ सदन में पहुंचे 
सबकी हिल गयी चूल. 

क्षणिकाएं

तौबा-तौबा कर रहा 
बिल जनलोकपाल,
इस्तीफ़ा दे घर लौट गए
आप के केजरीवाल.
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राजनीति में फँस गया आकर 
एक शुतुरमुर्ग का अण्डा,
घड़ी-घड़ी उठा रहा 
भारत माँ का झण्डा. 

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डर

मेरी मौत का
मातम मत मनाना
न मुझे जलाना 
कब्र पर फातिहा भी मत पढ़ना
बस एक चिराग रोशन रखना
सिरहाने में, क्योंकि 
अँधेरे से डरता हूँ.

मील का पत्थर हूँ

मील का पत्थर हूँ, 
किनारे हूँ, किन्तु अन्तस्थ धँसा हूँ
हर मंज़िल मुझसे होकर गुज़रती है.
पथिक! अनभिज्ञ हो तुम
न चाहो, फिर भी  
निगाहें ढूंढ़ेंगी
मुझसे मंज़िल का पता पूछेंगी.
मैं त्रस्त नहीं,
अभ्यस्त हूँ, 
अभिशप्त हो सकता हूँ,
कदाचित उपेक्षित नहीं.
मील का पत्थर हूँ
ज्ञात-अज्ञात मंज़िलों से बदा 
अभिलेख हूँ ,
सभी के काम आये
वो शिला लेख हूँ.
राह पूछकर चलते बनो 
रुको मत,  
मैं किसी की मंज़िल नहीं, 
न मेरी कोई मंज़िल.