January 3, 2012

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पहाड़ों वाली
एक गुजारिश है
मेरी स्मृतियों से
अपने दर का
रास्ता मिटा दे
अब नहीं आ सकूँगा
सच तू ऊँचे महलों वाली है!

भैरव...
तुमसे जो माँगा था
अब कभी न देना
सहेज नहीं सकूँगा!
यह काया
कई खण्डों में विभक्त है
बस इन्हें समेटना चाहता हूँ.
आद्या...
कुछ बरस पहले
तेरे आँगन वाले पेड़ पर
एक कतरन बाँधी थी
शायद पूरी हो गयी
वह मन्नत
तेरे चरणों में
बहुत शांति मिली
अब वह समर्पण नहीं रहा
किसी भांति उस
कतरन की गाँठ खोल दे.