February 28, 2011

तुम दीप प्रिये मैं पतंग

तुम दीप प्रिये
मैं ठहरा पतंग
तुम पर आकर्षित होता रहूँगा
जल जाना मंज़ूर
मगर अँधेरे में नहीं लौटूंगा.

तुम जलना
घर रोशन करना
मैं ईंधन बन जाऊँगा
अँधेरे में नहीं लौटूंगा.

तुम ज्योति, मैं बाती
रश्मियाँ तल तक
पहुँच नहीं पातीं
कैसे तल के तम हरूँगा?
अँधेरे में नहीं लौटूंगा.

जलना मेरी फितरत
तुमसे मिलन की हसरत
संवरित नहीं कर पाऊंगा
तुम जलना
संग मैं भी जल मरूँगा
अँधेरे में नहीं लौटूंगा.