तुम दीप प्रिये
मैं ठहरा पतंग
तुम पर आकर्षित होता रहूँगा
जल जाना मंज़ूर
मगर अँधेरे में नहीं लौटूंगा.
तुम जलना
घर रोशन करना
मैं ईंधन बन जाऊँगा
अँधेरे में नहीं लौटूंगा.
तुम ज्योति, मैं बाती
रश्मियाँ तल तक
पहुँच नहीं पातीं
कैसे तल के तम हरूँगा?
अँधेरे में नहीं लौटूंगा.
जलना मेरी फितरत
तुमसे मिलन की हसरत
संवरित नहीं कर पाऊंगा
तुम जलना
संग मैं भी जल मरूँगा
अँधेरे में नहीं लौटूंगा.