तुम याद आओगी
जब मैं तनहा
छत पर बैठूँगा
और तन को छूकर
गुजर जाया करेगी हवा.
यादों में महका करोगी
संदल सी और
ह्रदय में बसोगी
धड़कन की तरह.
कभी इठलाती
फूलों की डालियों की लचक देखूंगा
तब भी याद आओगी तुम.
भोर की किरणे
जब तहस नहस कर रही होंगी
अँधेरे का साम्राज्य
तब अलसाई आँखों से
आहिस्ता आहिस्ता
एक नयी सुबह देखूंगा
उस वक़्त भी तुम याद आओगी...
जब मैं तनहा
छत पर बैठूँगा
और तन को छूकर
गुजर जाया करेगी हवा.
यादों में महका करोगी
संदल सी और
ह्रदय में बसोगी
धड़कन की तरह.
कभी इठलाती
फूलों की डालियों की लचक देखूंगा
तब भी याद आओगी तुम.
भोर की किरणे
जब तहस नहस कर रही होंगी
अँधेरे का साम्राज्य
तब अलसाई आँखों से
आहिस्ता आहिस्ता
एक नयी सुबह देखूंगा
उस वक़्त भी तुम याद आओगी...