January 29, 2010

मैं भैरव हूं

बात ज्यादा पुरानी नहीं है। 2009 सितंबर के आखिरी सप्ताह यानि नवरात्र की है। नवरात्र के दौरान पूरे नौ दिन मैं भगवती की पूर्ण श्रद्धा और सात्विकता से उपासना करता हूं। यूं कहूं कि मैं उनकी मर्जी के खिलाफ कभी कुछ करता ही नहीं। वही राह सुझाती हैं और मैं उसी पर अब तक चलता आया हूं। दिसंबर 2008 से मेरे जीवन में कुछ ऐसी हलचल हुई जिससे मैं लगातार नौ माह तक जूझता रहा। जिंदगी का कोई मतलब नहीं रह गया था। दुर्भाग्य के ये नौ मास मैं कभी नहीं भूलूंगा। इससे पहले मैंने खुद को इतना कमजोर, लाचार और बेबस कभी नहीं पाया। इस दौरान मेरा ब्लड प्रेशर 176/97 रहता था, लेकिन काम के समय और तनाव के पल में यह और ज्यादा हो जाता था। नींद तो आती ही नहीं थी। कुल मिलाकर पागलपन की स्थिति थी। ब्लड प्रेशर जांचने के बाद एक बार डॉक्टर तो मेरे बारे में सुनकर चक्कर सा खा गया। उसने कहा- भाई सात दिन तक सुबह-शाम आपका ब्लड पे्रशर जांच करुंगा, इसके बाद ही कुछ कह पाऊंगा।
हां, नवरात्र के दौरान मैं कहीं नहीं जाता। अपने कमरे पर ही रहना पसंद करता हूं। ... लेकिन इस बार सहकर्मी अनुजों की जि़द के आगे मुझे झुकना पड़ा। रात को करीब दो बजे या इसके बाद घर लौटते समय उनके  कमरे पर चला जाता। इन्हीं दिनों इंटरनेट पर मेरा परिचय अंजु शर्मा नामक एक महिला से हुआ। वे रेकी मास्टर हैं। मैं पानीपत में रहता हूं और वे करीब 35 किलोमीटर दूर करनाल में रहती हैं। जब उन्हें पता चला कि मुझे नींद नहीं आती और मेरा ब्लड प्रेशर बढ़ा हुआ है तो उन्होंने मुझे किसी अच्छे डॉक्टर के पास जाने की सलाह दी। जब मैंने कहा कि मैं दवाई नहीं खाता। अपनी बीमारी मैं खुद ही ठीक कर लेता हूं तो उन्होंने कहा, 'मैं तुम्हें हीलिंग भेजती हूं। कुछ महसूस हो तो बताना।Ó रात करीब डेढ़ बजे जब घर लौट रहा था तभी रास्ते में मुझे अहसास हुआ कि कोई मुझ तक पहुंचने की कोशिश कर रहा है। पूरे शरीर में सिहरन सी हो रही थी। एक विलक्षण अनुभूति हो रही थी, मुझे बहुत आनंद आ रहा था। यह उनकी ओर से भेजी गई ऊर्जा थी जो मुझमें समा रही थी। मैं अतिशीघ्र कमरे पर पहुंचना चाहता था। मेरा निवास दफ्तर के पीछे सेक्टर-6 में है। कमरे पर पहुंच कर मैं कुर्सी पर बैठ गया ताकि इस शक्ति को और बेहतर ढंग से महसूस कर सकूं। काफी देर तक बैठा रहा, लेकिन अब वैसी सिहरन नहीं हो रही थी। मुझे नींद भी अच्छी आई। अगली रात करीब 11 बजे उनसे बात की तो उन्होंने कहा, 'चल आज तुझे कुछ और दिखाती हूं। मैं भी तैयार हो गया। पांच मिनट के भीतर मेरी आंखें स्वत: ही बंद हो गईं और एक क्षण को मां काली का रूप दिखा। बड़ी-बड़ी आंखें, खुले केश और सिर को गोल-गोल घुमाती हुई। इसके बाद पूरे शरीर में फिर वही सिहरन। मुझसे यह खुशी संवरण नहीं हो रही थी। मैं इसे किसी ऐसे शख्स से बांटना चाहता था जो मेरी बात को समझ सके। किन्तु दफ्तर में दो लोगों को छोड़कर मेरी किसी से उतनी आत्मीयता नहीं है। उनमें एक अमित हैं और दूसरी निवेदिता भारद्वाज। मैं भागकर बाहर गया, मैं बेतहाशा हंस रहा था। वह एक अद्भुत और विलक्षण खुशी थी। जि़ंदगी में पहली बार मुझे इसकी अनुभूति हुई थी। काश! मैं उस पल को शब्दों में बयां कर पाता। बहरहाल 10-15 मिनट तक मैं उसी आध्यात्मिक आनंद में रहा। अंतत: मैंने उन महिला को मोबाइल से मैसेज किया। हालांकि उन्होंने अपना नंबर मुझे दिया था, लेकिन अब तक उनसे कभी बात करने या उनसे संपर्क करने की जरूरत नहीं महसूस हुई थी। आध्यात्मिक प्रवाह में स्वत: ही मैंने उन्हें मां का दर्जा दे दिया। लगा जैसे मुझे वह गुरु मिल गया जिसकी मुझे तलाश थी।
बचपन से ही मुझे शरीर पर भभूत लपेटे, हाथ में कमंडल और धूनी लिए जटाओं वाला एक ऐसा साधु दिखता है जो हिमालय की तलहटी में भटक रहा है। जैसे उसे किसी गुरु की तलाश हो। बहरहाल, मां काली का वह रूप दो दिन तक मुझे रोमांचित करता रहा। अब मैं सोता तो सीधे नींद पूरी होने पर ही उठता। इस दौरान यदि किसी को फोन भी आया तो उससे बात करके फिर सो जाता, जबकि पहले ऐसा नहीं था। मुझे सदैव इस बात का डर रहता था कि कोई फोन न कर दे, क्योंकि एक बार आंख खुलने के बाद मेरी नींद ही उचट जाती थी। मेरा ब्लड पे्रशर भी आश्चर्यजनक ढंग से नॉर्मल हो चुका था। पहले बात-बात पर दुर्वासा की तरह क्रोध करने वाला मैं अब लोगों की बात सुनता। इसी तरह नवरात्र के पावन नौ दिन बीत गए।
आज विजयादशमी है। काम से निवृत्त होने के बाद मैं अपने कमरे पर पहुंचा। इससे पहले कि दरवाजा खोलता, मेरे एक साथी की आवाज कानों में पड़ी। शायद किसी से उनका झगड़ा हो रहा था। उन्होंने मुझे आवाजा दी- बाबा ज़रा आना। (मेरे सहकर्मी मुझे इसी नाम से बुलाते हैं।) मैं भाग कर उनके पास पहुंचा। आवाज सुनकर मेरे अनुज जो घर जा रहे थे, वे भी आ धमके। खैर, झगड़ा शांत करा कर हम अपने अपने घर को चले, लेकिन अनुज जि़द करने लगे कि बाबा हमारे साथ चलिए। अब तो नवरात्र भी खत्म हो गया। खाना हमारे साथ खाइए। ना-नुकुर के बाद मैं उनके साथ चल पड़ा। उनका कमरा इसी सेक्टर में मैदान के पिछले हिस्से में था। पीछे कोने पर ट्यूबवेल लगा है और दो-तीन पेड़ों को मिलाकर झुरमुट जैसा बनता है। सहसा मुझे लगा कि पेड़ों के झुरमुट में कोई है जो छिपने की कोशिश कर रहा है। वैसे मैं बता दूं- मैं वहमी नहीं हूं। यदि कोई कितना भी दबे पांव मेरे पीछे या आसपास से गुज़रने की कोशिश क्यों न करे, मुझे पता चल जाता है। मैं सोते समय भी सतर्क रहता हूं। हालांकि मैंने कुछ पल के लिए रूक कर देखने की कोशिश भी की, लेकिन अंधेरे के कारण मुझे पता नहीं चला।
अब हमलोग कमरे में बैठे थे। मैं दरवाजे पर ही बैठा था, अचानक मेरे शरीर में सिहरन होने लगी। मैंने आंख बंद कर देखने की कोशिश की कि यह ऊर्जा किस ओर से आ रही है। मुझे एक सुनसान और गंदी सी जगह दिखाई दी। यह रेकी मास्टर की ओर से तो कतई नहीं थी। फिर भी मैंने सोचा शायद किसी और मास्टर की ओर से आ रही होगी। इसलिए मैं उसे ग्रहण करता गया। रेकी या मेडिटेशन में एक शृंखला बनती है जब हम ऐसे किसी एक व्यक्ति के संपर्क में आते हैं जो ऊर्जा का स्रोत है तो औरों से भी जुड़ जाते हैं जिनके संपर्क में अगला व्यक्ति रहता है। घंटा भर वहां बैठने के बाद मैं अपने कमरे के लिए निकल पड़ा। अभी भोर के कोई चार बज रहे थे। उसी रास्ते से निकला, इस बार लगा जैसे पेड़ से कोई मेरे ऊपर कूदा। मुझे इसका अहसास हुआ, पूरा शरीर सिहर उठा। हालांकि डर जैसा कुछ अनुभव नहीं हुआ, लेकिन हृदय की गति सामान्य से अधिक जरूर थी। मैं कमरे पर पहुंचा तो थोड़ा भावुक हो गया। फिर एक भावुक मैसेज अंजु जी को कर दिया- मां! मेरे लिए सादा भोजन बनाकर रखना, मैं एक-दो दिन में आपके यहां आऊंगा और आपकी शिकायत दूर कर दूंगा। उनकी शिकायत थी कि पुरुष अभिमानी होते हैं और झुकते नहीं। इसके बाद अचानक मुझे बहुत तेज गुस्सा आया। अब तक जिन्हें मैं मां कह कर संबोधित कर रहा था, अब मेरे मुंह से अनायास उनके लिए गालियां निकल रही थीं। फिर मैंने एक मैसेज किया- एक मिनट के अंदर मुझे फोन कर नहीं तो तेरा सर्वनाश कर दूंगा। आश्चर्य तो यह था कि जो बात उन्होंने मुझे बताई नहीं थी मैं उसे जानता था। ऐसा नहीं कि यह मेरी काल्पनिक उड़ान थी। कल्पना का सहारा मैं सिर्फ कविताएं या कहानियां लिखने के लिए ही करता हूं। अभी एक मिनट भी नहीं हुआ था कि मेरा पारा और चढ़ गया। फिर मैंने उन्हें फोन कर दिया। उस समय सुबह के करीब 5 बज रहे थे।
- हरामजादी, मेरे बारे में सबकुछ पूछ लिया। अपने बारे में छिपाती है?
अंजु- क्या हुआ अर्जुन?
- चुप! बीच में मत बोल। चुपचाप सुन।
अंजु- हां... (थोड़ी घबराहट में), बोल... मैं सुन रही हूं।
- पहले बिस्तर से उठ। मुझे देख... दिख रहा हूं।
अंजु- उठ गई। अब बता।.... नहीं, तू नहीं दिख रहा।
- सामने आ...थोड़ा और सामने। दरवाजे के पास खड़ी हो।
अंजु- दरवाजे के पास आ गई...
- मैं दिख रहा हूं?
अंजु- हां... तू चौकड़ी मार कर बैठा है।
- मुझे पहचाना?
अंजु- नहीं... तू बता। तू कौन है?
- मैं भैरव हूं।
इस तरह काफी देर तक मैं उस भद्र महिला को अनाप-शनाप बकता रहा। उस वक्त मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मेरे कमरे में दो लोग मौजूद थे। एक बुजुर्गवार जो मुझे सोने के लिए कह रहे थे, दूसरा एक 30-32 साल का सामान्य कद काठी का एक युवक जो मुझसे थोड़ी दूर पर खड़ा था। मुझे उसका चेहरा आज भी याद है। हालांकि मैंन आज तक न तो इस शख्स से मिला था और न ही कभी देखा था। मैंने ये बातें अंजु जी को भी बताईं। इसके बाद उन्होंने मुझसे पूछा कि तू कहीं कोई सिद्धि तो नहीं कर रहा था?
- सारी शक्तियां तो मेरी ही हैं? मुझे सिद्धि की जरूरत क्यों पडऩे लगी? भवानी मेरी मां है। मुझे बिना मांगे सबकुछ देती हैं। मुझे किसी सिद्धि की जरूरत नहीं।
इसके बाद भी काफी कुछ बातें हमारे बीच हुई। आखिर में मैंने कहा- चल अब फोन रख... मेरे जाने का समय हो गया। सूर्योदय से पहले मुझे जाना है। इसके बाद मैंने फोन काट दिया। उस समय 6:10 बज रहे थे। इसके बाद मैं कमरे में ही इधर-उधर टहलने लगा। मुझे इस बात का पूरा आभास भी था कि आज तक मैंने ऐसा नहीं किया। अब ऐसा कैसे हो रहा है। एक अजीब बेचैनी और क्रोध था मेरे अंदर। साथ ही, ऐसा लग रहा था जैसे वह युवक मेरे पीछे-पीछे चल रहा है।
मैंने सोने की कोशिश की, लेकिन सो नहीं सका। करीब तीन बजे जब दफ्तर पहुंचा तो रिसेप्शन से लेकर न्यूजरूम तक सभी मुझे देख रहे थे। उसी दिन अमित का जन्म दिन था। हम सभी कांफे्रंस रूम में एकत्र हुए। केक कटा, लेकिन मेरे चेहरे से रौनक गायब थी। मुझे लग रहा था कि मेरा दम घुट जाएगा इतने लोगों के बीच। एक शक्ति मुझे वहां से बाहर ले जाने की कोशिश कर रही थी। चूंकि अमित मेरे बहुत अजीज हैं, इसलिए मैं चाहकर भी वहां से नहीं हट सका। मुझे बात-बात पर क्रोध आ रहा था, लेकिन मैं बिल्कुल चुप था। मेरा दिमाग दोनों ओर काम कर रहा था। मैं स्वयं से ही जूझ रहा था, लेकिन अपना सकारात्मक पक्ष नहीं छोड़ रहा था।
करीब दस बजे पहला डाक एडिशन छोड़कर मैं सिगरेट पीने के लिए बाहर निकला, लेकिन कदम खुद-ब-खुद सेक्टर की ओर मुड़ते चले गए। जहां तक याद है काम के वक्त आज तक मैं दफ्तर से इस तरह बाहर नहीं गया। कैंपस या ज्यादा से ज्याद कैंपस से बाहर जीटी रोड के किनारे जरूर चला जाता हूं। हां जब मैं कॉलोनी की ओर जा रहा था मुझे अहसास हुआ जैसे कोई मुझे निर्देश दे रहा हो। मैं यह बताना भूल गया कि अंजु जी और उनकी माता जी मेरे बदले व्यवहार को लेकर काफी चिंतित थीं। हालांकि मैं उन दोनों से कभी नहीं मिला था। फिर भी मेरे प्रति उनकी चिंता एक मां की ममता को दर्शाती है। उनका मुझसे बस यही लगाव था कि मैं रेकी के क्षेत्र में बहुत आगे जा सकता हूं। इसलिए वे मुझे मैसेज करती रहीं कि अर्जुन तुम कैसा महसूस कर रहे हो? लेकिन मैं हर बार उन्हें यही कहता कि मैं भैरव हूं। मुझे किसी अहसास की जरूरत नहीं है। बहरहाल मैं एक बार फिर अपनी सीट पर बैठ गया। इतना सबकुछ होने के बाद मैंने अपनी विक्षिप्तता को न तो काम पर हावी होने दिया और न ही किसी के समक्ष उजागर होने दिया। अभी मैं सीट पर बैठा ही था कि मुझे लगा जैसे कोई मुझे बुला रहा है। मैं क्रोध में तमतमाता हुआ बाहर निकला, लेकिन गेट के पास पहुंचकर सोचा.. अब बहुत हुआ... ये कौन है जो मुझे नचा रहा है? क्या बला है यह? मुझे तो कोई शक्ति कमजोर बना ही नहीं सकती। इतना ठानने के बाद मैंने सिगरेट पी और वापस न्यूजरूम में आकर काम में जुट गया। इसके बाद रात करीब 12 बजे मैंने हल्कापन महसूस किया। तब तक अंजुजी भी ऑनलाइन हो चुकीं थीं। उनसे फिर उसी आत्मीयता से बातचीत हुई। उन्हें बड़ी खुशी हुई। मैंने जब उनसे पूरी बात बताई तो उन्होंने कहा- तेरा आत्मबल तुझे फिर से खींच लाया। पर वह क्या था? क्या तुम उसे जानते हो? लेकिन मेरा एक ही जवाब था- ये तो मैं खुद नहीं जान पाया। हालांकि वे कहती हैं कि हो सकता है कि यह किसी तरह की क्लीनजिंग हो सकती है। लेकिन मैंने जो झेला उसे मैं ही जानता हूं। मुझे इसका पूरा अहसास था कि मेरा मस्तिष्क किसी शक्ति से लगातार जूझ रहा है। ऐसा प्रतीत होता था जैसे दिमाग की नसें फट जाएंगी। मैं किसी भी पल पागल हो जाऊंगा। उस रात मैं सीधे अपने कमरे पर गया। पीछे से मेरे अनुज आ धमके और मुझे अपने यहां ले जाने की जि़द करने लगे। काफी देर तक मैं टालता रहा, लेकिन अंतत: मुझे उनकी जि़द के आगे झुकना पड़ा। दरअसल मैं डर रहा था, उस रात के वाकये से। मैं इस बात के लिए डर रहा था कि कहीं फिर मैं उस शक्ति के चंगुल में न फंस जाऊं। यह विचार मन में आते ही मैंने ठान लिया, अब तो चलना ही पड़ेगा। मैं उन्हीं रास्तों से उनके कमरे पर गया। उसी तरह दरवाजे पर बैठा। कुछ देर बाद फिर मेरे शरीर में सिहरन हुई। लगा जैसे कोई मुझ तक पहुंचने की कोशिश कर रहा है। मैंने आंख बंद की तो फिर वही सुनसान दृश्य दिखा। ध्यान लगाया तो लगा जैसे कोई सफेद आकृति मेरे ठीक ऊपर छत पर बैठी है। यह आकृति कोई और नहीं उसी युवक की थी जो मुझे कमरे पर दिखा था। (ऐसा लिखते वक्त अभी भी मेरे शरीर में सिहरन हो रही है।) मैं झटके से बाहर निकला और ऊपर देखा। फिर लड़कों से पूछा- यह बताओ पीछे वाले कमरे की छत पर कोई पीपल का पेड़ है क्या?
उन्होंने कहा- हां, है।... लेकिन आप यह क्यों पूछ रहे हैं। मैंने कहा- इस घर में बाथरूम और टॉयलेट के बीच मुझे नकारात्मक जगह दिख रही है। हालांकि यह पूरा घर ही नकारात्मक है। फिर मैं छत पर भी गया। उन लड़कों से कहा- यह घर ठीक नहीं है। तुम लोग हमेशा मदहोशी में ही रहोगे इस घर में। कोई रूटीन नहीं होगा। जैसे-तैसे ही रहोगे। यदि बिना वजह चिंता से दूर रहना है तो इस मकान को छोड़ो। फिर मुझे ध्यान आया करीब एक साल पहले इसी गली में एक लड़के ने ख़ुदकुशी कर ली थी.
उन लोगों ने मेरी बात मानी और कुछ दिनों में ही उन्होंने कमरा शिफ्ट कर लिया। कमरा बदलते ही उनकी दिनचर्या में भी बदलाव आया। राहुल भी इस बात को मानता है कि उनके रहन-सहन में काफी बदलाव आया। लेकिन मुझे आज तक यह पता नहीं चल पाया कि आखिर वह शक्ति क्या थी। हां, सिर्फ अमित ही थे जिन्होंने मेरे भीतर आए एकदिवसीय बदलाव को नोटिस किया था। उनके मुताबिक मेरी आंखें अप्रत्याशित तरीके से लाल थीं, जिसमें सिर्फ क्रोध ही क्रोध समाया हुआ था।