October 14, 2009

34. डर लगता है...

डर लगता है
यह सोचकर
कहीं तुम
मुझे भूल तो नहीं जाओगी

जब कभी भी चाँद को देखता हूँ
या खिड़की से पतझड़ में
दहकते लाल पलाश की शाखों को
तब डर लगता है...
कहीं साथ छोड़ गयी
तब मेरा क्या होगा???
आग के निकट पड़ी राख
स्पर्श करता हूँ
या ठण्ड से सिकुडी हुई लकड़ी को
ये सब मुझे तुम्हारे पास ले आते हैं।
तब लगता है
ये उजाले
बिखरे पत्थर
और ये हवा
सभी को मेरा ही इंतज़ार है
तब सचमुच डर लगता ...

फ़िर उदास मन सोचता है
क्या होगा??
जब धीरे-धीरे
तुमने मुझे प्रेम करना छोड़ दिया तो!!!
क्या मैं भी
उसी तरह
तुम्हें प्रेम करना छोड़ दूंगा??

फ़िर सोचता हूँ...
यदि किसी दिन
अचानक तुम मुझे भूल गयी तो????
क्या मैं पहले से ही तुम्हें भूल चुका होऊंगा??

भले तुम इसे मेरा
पागलपन या अल्हड़पन मानो
किंतु मेरी ज़िन्दगी
तुम्हीं से होकर गुज़रती है।

और तब सोचता हूँ...
एक दिन कहीं तुमने
ह्रदय के उस किनारे मुझे छोड़ दिया तो!!!
जहाँ मेरी जड़ें हैं
तब सचमुच डर लगता है...

फ़िर मैं उस दिन
उस लम्हे को याद करता हूँ
जब हाथ उठाते ही
मैं जड़ से उखड जाऊँगा
एक नयी ज़मीन की तलाश में!

...लेकिन हर दिन
हर लम्हा मुझे तुम्हारी याद आएगी
और महसूस करोगी तुम भी
की मेरी मंजिल तुम हो।

मेरी चाह में
जब इन फूलों को
अपने होंठों से लगाओगी
हाय! मेरे प्रियतम
हाय! मेरे अपने
बिलखती हुई
मुझे जलती चिता में ढूंढोगी
तब भी मेरे मन में
तुम्हारे लिए प्रेम रहेगा।
क्योंकि मेरा प्रेम तो
तुम्हारे प्रेम पर ही पलता है
हैं न प्रिये!!

33. रहता तो आजाद!

पंछी होता तो उड़ जाता
डाल-डाल पर बैठ के गाता
कटुक निबौरी ही चुग लेता
रहता तो आजाद!
यह काँटों का बिस्तर
और फिसलती पल-पल रात
नींद नहीं आंखों में मेरे
फ़िर बीती सपनों की रात
आहट पाकर खिड़की खोली
लो आ गया प्रभात!
तकिये को सिरहाने खींचे
सोच रहा की चिडिया बोले
तितली अपने पंख को खोले
आ बैठे मेरे आँगन में
और कर जाए दो बात!

socha na tha: यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है....

socha na tha: यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है....

32. भटकना मत

सबकुछ छोड़ देना
सपने देखना
कभी मत छोड़ना
बेशक बिसार देना मुझे
मेरा प्रेम न बिसराना।
बढ़ते रहना
चलते रहना
राह भटकाता दिखे कोई
तब सामने धंसे
मील के पत्थर को देखना
सही राह दिखायेगा।
फ़िर एक दिन
जब सबकुछ हासिल कर लो
सिर्फ़ एक बार पीछे मुडकर देखना
गहरी साँस फेफड़ों में भरकर
शांत मन से एक क्षण को
मुझे नहीं
मेरा प्रेम याद करना
उस मील के पत्थर को देखना
वह मैं ही था.

31. तुम्हें याद है????

तुम्हें याद है
वह पहली मुलाकात...
कैसे घबरा कर हाथ छुड़ाया था
क्या होगा अब?
सोचकर शायद
धवल रूप कुम्हलाया था।
सच कहूं
ह्रदय तड़प उठा था
मन आशंकित था
उस दिन जेठ की दुपहरी में
पता नहीं कब तक चलता रहा
यह सोचकर
क्या होगा अब?
क्या तुम्हें याद है?
(कोई जवाब नहीं)
हाँ, मुझे अब भी याद है
सबकुछ आईने की तरह साफ़ है
मानो कल ही की बात है।

दूसरी मुलाकात
याद आया...
पेडों की छाँव में
सीढियों से उतर कर
तुम आयीं थी मुझे ले जाने
बंद कमरे में साथ रहे
हम दो दिन तक
तब तुमने ही तो कहा था
...लगता है मानो
बरसों से हम जानते हैं
एक-दूसरे को!
तब दूसरी बार तुम्हें
छुआ था
गले भी लगाया था
सिहरन आज भी होती है।
फ़िर एक दिन
मेरे साथ तुम घर आयीं
तुम्हें पलकों पर बैठाऊं
बाहों के झूले में झुलाऊं
कुछ ऐसे ही उलझन में था
तब तुम्हीं ने तो कहा था
- हमेशा साथ रहूंगी।
उसके बाद
कई बार आयीं तुम मेरे घर
फ़िर आखिरी बार
वह भी याद है।
उसके बाद क्या हुआ?
मुझे कुछ याद नहीं!!!
क्या हुआ?
क्यों हुआ?
कैसे हुआ?
एक दिन अचानक तुम दूर चली गयीं
मुझे कुछ नहीं पता
कुछ भी याद नहीं
क्या तुम्हें याद है??
बताओ न
सचमुच
मुझे कुछ याद नहीं......

30. सपने भी पलते हैं

कभी ख़्वाबों को भी पंख दो
ये उड़ना चाहते हैं
इन्हें उन्मुक्त छोड़ कर देखो
ये भटकते नही
न ही ओझल होते हैं।
सपने कभी भारी नहीं होते
ये उम्मीदों पर पलते हैं
भावनाओं में बसते हैं।
इनमें छल नहीं होता
ये निश्छल होते हैं।
कभी डूबो-उतराओ इनमें
सींचो...
ये भी पलते हैं
इन्हें सहेजो, पालो
क्योंकि सपने भी फलते हैं...