पंछी होता तो उड़ जाता
डाल-डाल पर बैठ के गाता
कटुक निबौरी ही चुग लेता
रहता तो आजाद!
यह काँटों का बिस्तर
और फिसलती पल-पल रात
नींद नहीं आंखों में मेरे
फ़िर बीती सपनों की रात
आहट पाकर खिड़की खोली
लो आ गया प्रभात!
तकिये को सिरहाने खींचे
सोच रहा की चिडिया बोले
तितली अपने पंख को खोले
आ बैठे मेरे आँगन में
और कर जाए दो बात!
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