डर लगता है
यह सोचकर
कहीं तुम
मुझे भूल तो नहीं जाओगी
जब कभी भी चाँद को देखता हूँ
या खिड़की से पतझड़ में
दहकते लाल पलाश की शाखों को
तब डर लगता है...
कहीं साथ छोड़ गयी
तब मेरा क्या होगा???
आग के निकट पड़ी राख
स्पर्श करता हूँ
या ठण्ड से सिकुडी हुई लकड़ी को
ये सब मुझे तुम्हारे पास ले आते हैं।
तब लगता है
ये उजाले
बिखरे पत्थर
और ये हवा
सभी को मेरा ही इंतज़ार है
तब सचमुच डर लगता ...
फ़िर उदास मन सोचता है
क्या होगा??
जब धीरे-धीरे
तुमने मुझे प्रेम करना छोड़ दिया तो!!!
क्या मैं भी
उसी तरह
तुम्हें प्रेम करना छोड़ दूंगा??
फ़िर सोचता हूँ...
यदि किसी दिन
अचानक तुम मुझे भूल गयी तो????
क्या मैं पहले से ही तुम्हें भूल चुका होऊंगा??
भले तुम इसे मेरा
पागलपन या अल्हड़पन मानो
किंतु मेरी ज़िन्दगी
तुम्हीं से होकर गुज़रती है।
और तब सोचता हूँ...
एक दिन कहीं तुमने
ह्रदय के उस किनारे मुझे छोड़ दिया तो!!!
जहाँ मेरी जड़ें हैं
तब सचमुच डर लगता है...
फ़िर मैं उस दिन
उस लम्हे को याद करता हूँ
जब हाथ उठाते ही
मैं जड़ से उखड जाऊँगा
एक नयी ज़मीन की तलाश में!
...लेकिन हर दिन
हर लम्हा मुझे तुम्हारी याद आएगी
और महसूस करोगी तुम भी
की मेरी मंजिल तुम हो।
मेरी चाह में
जब इन फूलों को
अपने होंठों से लगाओगी
हाय! मेरे प्रियतम
हाय! मेरे अपने
बिलखती हुई
मुझे जलती चिता में ढूंढोगी
तब भी मेरे मन में
तुम्हारे लिए प्रेम रहेगा।
क्योंकि मेरा प्रेम तो
तुम्हारे प्रेम पर ही पलता है
हैं न प्रिये!!
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