और मन करे तो
बस एक आवाज़ देना
मैं आऊंगा.
बेला, गुलाब, जूही
चंपा-चमेली के
गुलदस्ते लाऊंगा.
कभी सावन सा बरसूँगा
मेह बनकर
कभी बसंत के
रंग दे जाऊंगा.
मुझे बुलाना
ज़रूर आऊंगा
आँगन के अमलतास
और दरवाज़े पर खड़े गुलमोहर
की डालों पर फूल दे जाऊंगा
तुम महका करना
मुझे याद करके
चौंका करना
तुमसे मिलूँगा
इन्हीं फूलों के बीच
तुम्हें तारो ताज़ा करने के लिए
कहो बुलाओगी न?
4 comments:
बहुत सुंदर कविता है.
बधाई.
बेहद खूबसूरत। बाबा, क्या बात। क्या बात। क्या बात।
ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है
इतनी शिद्दत...,किसको इनकार होगा
Post a Comment