April 27, 2010

मैं ज़रूर आऊंगा

मुझे dhundhna याद करना
और मन करे तो
बस एक आवाज़ देना
मैं आऊंगा.
बेला, गुलाब, जूही
चंपा-चमेली के
गुलदस्ते लाऊंगा.
कभी सावन सा बरसूँगा 
मेह बनकर
कभी बसंत के
रंग दे जाऊंगा.
मुझे बुलाना
ज़रूर आऊंगा
आँगन के अमलतास
और दरवाज़े पर खड़े गुलमोहर
की डालों पर फूल दे जाऊंगा
तुम महका करना
मुझे याद करके
चौंका करना
तुमसे मिलूँगा
इन्हीं फूलों के बीच
तुम्हें तारो ताज़ा करने के लिए
कहो बुलाओगी न?


4 comments:

Mayur Malhar said...

बहुत सुंदर कविता है.
बधाई.

रवि धवन said...

बेहद खूबसूरत। बाबा, क्या बात। क्या बात। क्या बात।

संजय भास्‍कर said...

ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है

Manoj Bhayana said...

इतनी शिद्दत...,किसको इनकार होगा