तुम्हें याद है
वह पहली मुलाकात...
कैसे घबरा कर हाथ छुड़ाया था
क्या होगा अब?
सोचकर शायद
धवल रूप कुम्हलाया था।
सच कहूं
ह्रदय तड़प उठा था
मन आशंकित था
उस दिन जेठ की दुपहरी में
पता नहीं कब तक चलता रहा
यह सोचकर
क्या होगा अब?
क्या तुम्हें याद है?
(कोई जवाब नहीं)
हाँ, मुझे अब भी याद है
सबकुछ आईने की तरह साफ़ है
मानो कल ही की बात है।
दूसरी मुलाकात
याद आया...
पेडों की छाँव में
सीढियों से उतर कर
तुम आयीं थी मुझे ले जाने
बंद कमरे में साथ रहे
हम दो दिन तक
तब तुमने ही तो कहा था
...लगता है मानो
बरसों से हम जानते हैं
एक-दूसरे को!
तब दूसरी बार तुम्हें
छुआ था
गले भी लगाया था
सिहरन आज भी होती है।
फ़िर एक दिन
मेरे साथ तुम घर आयीं
तुम्हें पलकों पर बैठाऊं
बाहों के झूले में झुलाऊं
कुछ ऐसे ही उलझन में था
तब तुम्हीं ने तो कहा था
- हमेशा साथ रहूंगी।
उसके बाद
कई बार आयीं तुम मेरे घर
फ़िर आखिरी बार
वह भी याद है।
उसके बाद क्या हुआ?
मुझे कुछ याद नहीं!!!
क्या हुआ?
क्यों हुआ?
कैसे हुआ?
एक दिन अचानक तुम दूर चली गयीं
मुझे कुछ नहीं पता
कुछ भी याद नहीं
क्या तुम्हें याद है??
बताओ न
सचमुच
मुझे कुछ याद नहीं......
1 comment:
बहुत ही बेहतरीन है बाबा..... मैंने हमेशा यह माना है की आप जो लिखते हैं वो कहीं ना कहीं मेरे मन को छु जाता है.... आप शब्दों से खेलना जानते हैं......
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