December 30, 2007

9. तुम्बा भर शराब

ढाई सेर अनाज
तुम्बा भर शराब
चिल्ल-पों से दूर-
एक हम
एक तुम...
खूब पीयेंगे।
बच्चन की मधुशाला
मदिरा की हाला न सही
चुक्करों में ही उड़ेलेंगे
किन्तु, तुम्बा भर शराब पीयेंगे।
धमनियों में
लहू नहीं
मदिरा दौड़ेगी
ह्रदय की हूक
सुनेगा कौन?
जब तुम्बा भर शराब
सिर चढ़कर बोलेगी
इन घुच्च आंखों का रहस्य खोलेगी!
हलक सूखेगा ....
चुक्करों में मानवता तब
नीर नहीं
तुम्बा भर शराब उड़ेलेगी!
धुंध छंटेगा
भ्रम मिटेगा
तन डोलेगा
झूमेंगे मतवाले
जब लहू में
मदिरा दौड़ेगी
इन पुतलियों की भाषा
तुम्बा भर शराब ही बोलेगी!!

2 comments:

Anonymous said...

Hmm..it's of our type....
god one!

Anonymous said...

sorry good one!