July 14, 2011

मुझे पाषाण बना दो

सुनो ...
मुझे पाषाण बना दो
जिसमें न ह्रदय
न भावनाएं,
न संवेदनाएं हों
न इसके धड़कने का डर हो
किसी से आहत
न दुःख से द्रवित हो
आंसुओं से भी जो

बेखबर, बेअसर हो
ऐसा मुझे निष्ठुर एक इंसान बना दो.


   

1 comment:

हरकीरत ' हीर' said...

बहुत खूब .....
अगर ऐसी १०,१२ क्षणिकायें सरस्वती-सुमन patrikaa के लिए भेज सकें तो आभारी रहूंगी ....
अपने संक्षिप्त परिचय और chitr के साथ ....

harkirathaqeer@gmail.com