कभी पूछना बादलों से
इस बसंत नभ क्यों रोया था?
क्यों पेड़ों की शाखों पर झूले सूने-सूने थे?
प्रेम का मौसम था
फिर भी मन के उपवन क्यों सूने-सूने थे?
कभी पूछना मन अकुलाया क्यों था?
पिंजड़े के कैदी थे
सोते थे नींद नहीं क्यों आती थी!
कोई ख्वाब पीछे छूट रहा था
कोई साथ कहीं से छूट रहा था
एक साथ कई कई आजमा रहे थे
प्रेम की कसौटी पर कस रहे थे
तब कौन टूटा था?
कभी पूछना
फिर क्या हुआ था?
फिर क्या हुआ था?
सुनो, मैं बताता हूँ
दो मौतें हुई थीं
दो जीवन बदला था
एक अनमना, दूजा पगला सा
ढूंढा था अक्स
आइना मिला था.
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