March 1, 2011

बस इतना ही था विश्वास!

टूट रहा विश्वास कहो यह किसका है
तेरा है या मेरा है?
कहो अक्स मेरे

क्यों मुझसे तुम दूर हुए?
दोनों में कौन बड़ा था
झूठी कसम या मेरा विश्वास?
ये किस पाश में मुझको फांस दिया?
न जी सकूँ
न मर सकूँ
कैसे भ्रम में डाल दिया!
थोड़ा संयम तुम और रखते 
 एक बार मुझसे तो कहते
छूट रहा है साथ!
आह मेरे अक्स
बस इतना ही था विश्वास!

1 comment:

रवि धवन said...

बाबा बेहद बढिय़ा। अंतर्मन को छूती कविता। कई बार तो शब्दों से आसानी से खेल जाते हो।