September 10, 2010

संयम

बादलो! बरसो पर इतना याद रहे
फुटपाथों पर सोने वाले भी रोते हैं
भीग जाये बिछौना
रात आँखों में काटते हैं …
यमुना तेरे तट पर भी तो लोग रहते हैं
बहते सपने देख क्या ये नहीं रोते हैं!
संयम क्यों गरीब ही रखें
थोड़ा तुम, थोड़ा ये रखें...

4 comments:

Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) said...

फुटपाथों पर सोने वाले भी रोते हैं
भीग जाये बिछौना
रात आँखों में काटते हैं …


सच है...

स्वप्न मञ्जूषा said...

शायद आप 'बादलो' लिखना चाहते थे...टाइपिंग की त्रुटि हो गई है...
बहुत सुन्दर कविता लगी आपकी...

रवि धवन said...

बाबा बेहद बढिय़ा।
हम रोज बाढ़ बाढ़ छाप रहे हैं। क्यों न आपकी इस कविता का भी प्रयोग कर लें।
सही में, दिल को छू रही है।

nagarjuna said...

त्रुटि की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए शुक्रिया अदा जी ... कोशिश करता हूँ कि कम लिखूं लेकिन असरदार हो...एक बार फिर शुक्रिया बहुमूल्य टिपण्णी के लिए ...
रवि को भी प्यार... हमेशा सराहता है...कभी आलोचना भी किया कर मेरे लाल.... हा हा हा