ख़ामोशी
October 27, 2009
42. अधरों से कुछ तो फूटे
कुसुम कोमल
यह रूप धवल
प्यासे अधर
मनमीत विकल.
व्याकुल नयना
राह तके
हर दिन मन में
इक आस जगे.
स्मृतियों में चलचित्र
मधुर मिलन की
पूर्व की स्मृतियाँ ओझल.
पर यह चुप्पी तो टूटे
अधरों से कुछ तो फूटे....
1 comment:
रवि धवन
said...
ऐसा ही होता है मन...बधाई एक और सुन्दर रचना के लिए
October 28, 2009 at 4:55 AM
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ऐसा ही होता है मन...बधाई एक और सुन्दर रचना के लिए
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