November 30, 2012

मैं विश्रांत हूँ

मैं विश्रांत हूँ...
गतिहीन होकर
शून्य में लटक रहा हूँ!

पूर्ण निस्तब्धता
न कोई कोलाहल
न कोई अंतर्द्वंद्व
एकाग्रचित्त होकर भविष्य को निहार रहा हूँ.

तुम्हारे... उनके
वैचारिक प्रदूषण से मुक्त
ठहर चुका हूँ
नए सृजन के निहितार्थ!

कुंद पड़ते विचारों को
धार दे रहा हूँ
अब उस पर नहीं होगी
बीते ऋतुओं के प्रभावों की छाप!

लंगड़े अतीत!
यहीं तक साथ था
वह देख रहे हो...
गतिमान सुरमई लहरों के पार
वहीँ जाना है
परन्तु, तुम नहीं जा सकोगे
कोई नाव नहीं जाती उस पार
यहीं ठहरो!
कभी कभी
मिलने आ जाया करूँगा तुमसे.

संतोष कर लो
यह जान कर
तुम्हारी मंजिल अब यहीं
और मेरी... उस पार.



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