January 10, 2012

फिर तुम्हें पुकारता हूँ

मेरे अक्स!
आज फिर तुम्हें पुकारता हूँ
ध्वनि की तीव्रता परखनी है
देखना चाहता हूँ
कितनी शक्ति बची है?

शब्दों के सामर्थ्य को
आजमाना चाहता हूँ
तड़प इस ह्रदय की
तुम तक पहुँचाना चाहता हूँ.

अगर सुन सको तो सुनना
एक-एक शब्द
मेरे दर्द की पराकाष्ठा होगी
हर शब्द दुहाई देगा
कि तुम मेरा बिम्ब हो
मेरी प्रतिकृति.

शब्दों में डूबे दर्द के
यथार्थ को महसूस करना
बेचारगी बाहें फैलाए खड़ी मिलेगी.

सुनो...
तुम्हें फिर पुकारता हूँ
ताकि तुम भी आजमाओ
अपनी श्रवण शक्ति
महसूस करो
संवेदनाओं में लिपटे
शब्दों की सिहरन.

ध्वनि तरंगें
कर्ण पटल पर
आघात करे
बेचैन शब्द
मन में अकुलाहट भर दे
तब आना उसी दोराहे पर
जहां एक रास्ता
घर तक जाता है
और दूसरा शहर के बाहर!

तुम्हें पुकारता रहूँगा
बार-बार
कभी मंदिर की घंटियों के रूप में
कभी सिटी बजाती ट्रेन के रूप में
कभी भंवरे की गुंजन
भींगी ओस की रात
और कभी मासूम क्रंदन के रूप में.

सुन सको तो सुनना
दसों दिशाओं में
गूंजते अनुनय को
सब अहसास कराएँगे
मैं वहीँ कहीं हूँ
तुम्हारे आस-पास.

फिर एक दिन
जब चहुँ ओर शांति छाई हो
और सन्नाटे का साम्राज्य
तहस-नहस करते
सैकड़ों-हज़ारों
झींगुरों की झनझनाहट सुनो
तब महसूस करना
ढंडी हवा के झोकों के रूप में
मेरी मृत काया.

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