May 7, 2010

तुम याद आओगी

तुम याद आओगी
जब मैं तनहा
छत पर बैठूँगा
और तन को छूकर
गुजर जाया करेगी हवा.

यादों में महका करोगी
संदल सी और
ह्रदय में बसोगी
धड़कन की तरह.
कभी इठलाती
फूलों की डालियों की लचक देखूंगा
तब भी याद आओगी तुम.

भोर की किरणे
जब तहस नहस कर रही होंगी
अँधेरे का साम्राज्य
तब अलसाई आँखों से
आहिस्ता आहिस्ता
एक नयी सुबह देखूंगा
उस वक़्त भी तुम याद आओगी...

3 comments:

संजय भास्‍कर said...

सुन्दर भावों को बखूबी शब्द जिस खूबसूरती से तराशा है। काबिले तारीफ है।

संजय भास्‍कर said...

तब अलसाई आँखों से
आहिस्ता आहिस्ता
एक नयी सुबह देखूंगा
उस वक़्त भी तुम याद आओगी...



इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....

हरकीरत ' हीर' said...

यद् आने के तो बहुत से कारण हैं संदीप जी .....सुंदर रचना ....!!
स्वागत है आपका .....!!