सीमा आज़ाद मानवाधिकार संस्था पी.यू.सी.एल. से सम्बद्ध हैं, साथ ही द्वैमासिक पत्रिका "दस्तक" की सम्पादक हैं और उनके पति विश्वविजय वामपन्थी रुझान वाले सामाजिक कार्यकर्ता हैं. अपनी पत्रिका "दस्तक" में सीमा लगातार मौजूदा जनविरोधी सरकार की मुखर आलोचना करती रही है. सीमा ने पत्रिका का सम्पादन करने के साथ-साथ सरकार के बहुत-से क़दमों का कच्चा-चिट्ठा खोलने वाली पुस्तिकाएं भी प्रकाशित की हैं. इनमें गंगा एक्सप्रेस-वे, कानपुर के कपड़ा उद्योग और नौगढ़ में पुलिसिया दमन से सम्बन्धित पुस्तिकाएं बहुत चर्चित रही हैं. हाल ही में, १९ जनवरी को सीमा ने गृह मन्त्री पी चिदम्बरम के कुख्यात "औपरेशन ग्रीनहण्ट" के खिलाफ़ लेखों का एक संग्रह प्रकाशित किया. ज़ाहिर है, इन सारी वजहों से सरकार की नज़र सीमा पर थी और ६ तारीख़ को पुलिस ने सीमा और विश्वविजय को गिरफ़्तार कर लिया और जैसा कि दसियों मामलों में देखा गया है उनसे झूठी बरामदगियां दिखा कर उन पर राजद्रोह का अभियोग लगा दिया.
हमारी तथाकथित लोकतांत्रिक व्यवस्था अपनी नीतियों के विरोधियों को कभी "आतंकवादी" और कभी "नक्सलवादी" या "माओवादी" घोषित करके जेल की सलाखों के पीछे ठूंसने का वही फ़र्रुख़ाबादी खेल खेलने लगी है. इस खेल में सब कुछ जायज़ है -- हर तरह का झूठ, हर तरह का फ़रेब और हर तरह का दमन. और इस फ़रेब में सरकार का सबसे बड़ा सहयोगी है हमारा बिका हुआ मीडिया. इसीलिए हैरत नहीं हुई कि सीमा की गिरफ़्तारी के बाद अख़बारों ने हर तरह की अतिरंजित सनसनीख़ेज़ ख़बरें छापीं कि ट्रक भर कर नक्सलवादी साहित्य बरामद हुआ है, कि सीमा माओवादियों की "डेनकीपर" (आश्रयदाता) थी.
इस संबंध में विस्तृत जानकारी के लिए देखें युवा पत्रकार विजय प्रताप का ब्लॉग नई पीढ़ी। (इस पोस्ट का कुछ अंश उनके ब्लॉग से ही लिया गया है)
हमारी तथाकथित लोकतांत्रिक व्यवस्था अपनी नीतियों के विरोधियों को कभी "आतंकवादी" और कभी "नक्सलवादी" या "माओवादी" घोषित करके जेल की सलाखों के पीछे ठूंसने का वही फ़र्रुख़ाबादी खेल खेलने लगी है. इस खेल में सब कुछ जायज़ है -- हर तरह का झूठ, हर तरह का फ़रेब और हर तरह का दमन. और इस फ़रेब में सरकार का सबसे बड़ा सहयोगी है हमारा बिका हुआ मीडिया. इसीलिए हैरत नहीं हुई कि सीमा की गिरफ़्तारी के बाद अख़बारों ने हर तरह की अतिरंजित सनसनीख़ेज़ ख़बरें छापीं कि ट्रक भर कर नक्सलवादी साहित्य बरामद हुआ है, कि सीमा माओवादियों की "डेनकीपर" (आश्रयदाता) थी.
इस संबंध में विस्तृत जानकारी के लिए देखें युवा पत्रकार विजय प्रताप का ब्लॉग नई पीढ़ी। (इस पोस्ट का कुछ अंश उनके ब्लॉग से ही लिया गया है)
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nice
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