November 6, 2009

47. एक कुफ्र टूटा

एक कुफ्र टूटा
खुदा खुदा करके
एक टूटेगा
तौबा करके.
ये दर्द जिसे पालता हूँ
बरस दर बरस
सालता हूँ
यही तो मुझे मंजिल की
याद दिलाते हैं.
कहाँ जाना है
यही तो बताते हैं!

4 comments:

Unknown said...

बहुत अच्छा लिखा है,,,,

http://www.dunalee.blogspot.com/

स्वप्न मञ्जूषा said...

bahut accha likha hain aapne..

GA said...
This comment has been removed by the author.
GA said...

bahut badhiya!!!