October 27, 2009

41. कई बार देखा है

कई बार तुम्हें अपने पास
मंडराते देखा है
गुमसुम सी
कहीं खोई सी
आती हो
पर कुछ नहीं कह पाती हो!
द्विविधा में डूबी
निराशा के गर्त में खोई
कहाँ जाना चाहती हो?
मुझमें कुछ पाने की आशा से आती हो
तब ज़रूर मिलेगा
कभी कोई खाली नहीं लौटा.
तुम्हें भी मिलेगा.
थोड़ा धीरज
थोड़ी आस्था तो रखना ही होगा.
कुछ पाना है तो
रास्ता भी ढूँढना होगा.
और कुछ न सही 
मुझसे थोड़ा सुकून
थोड़ी शांति ज़रूर मिलेगी.
इस बार आना तो
थोड़ा वक़्त देना
मेरे पास बैठना
मन की बात कहना.
अपने दुःख मुझे सौंप देना
मुझसे ढेरों खुशियाँ ले जाना.
और कुछ चाहिए तो
वह भी बता देना
मन करे तो अपनापन भी जता देना.