मन की गहराइयों में
निरंतर एक खामोशी
चक्कर कटती रहती है
हर वक्त
एक भय-सा छाया रहता है
मन-मष्तिष्क पर।
आशंकित स्वयं से ही जूझता
लगातार डर को
तोड़ने की कोशिश में
थक-सा गया हूँ।
कोई तो होता
जिसके कंधे पर सिर रखकर
कुछ पलों के लिए
उसके अक्स में विलीन हो
मधुर प्रेम की स्मृतियों को
अपनी बाँहों में समेटता।
उसके समक्ष मनोभावों को रखता
और वह पूरे
मनोयोग से मेरा समर्थन करता!
निरंतर एक खामोशी
चक्कर कटती रहती है
हर वक्त
एक भय-सा छाया रहता है
मन-मष्तिष्क पर।
आशंकित स्वयं से ही जूझता
लगातार डर को
तोड़ने की कोशिश में
थक-सा गया हूँ।
कोई तो होता
जिसके कंधे पर सिर रखकर
कुछ पलों के लिए
उसके अक्स में विलीन हो
मधुर प्रेम की स्मृतियों को
अपनी बाँहों में समेटता।
उसके समक्ष मनोभावों को रखता
और वह पूरे
मनोयोग से मेरा समर्थन करता!
1 comment:
i like it at most!!
sabse acchi poem....
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