February 16, 2014

मील का पत्थर हूँ

मील का पत्थर हूँ, 
किनारे हूँ, किन्तु अन्तस्थ धँसा हूँ
हर मंज़िल मुझसे होकर गुज़रती है.
पथिक! अनभिज्ञ हो तुम
न चाहो, फिर भी  
निगाहें ढूंढ़ेंगी
मुझसे मंज़िल का पता पूछेंगी.
मैं त्रस्त नहीं,
अभ्यस्त हूँ, 
अभिशप्त हो सकता हूँ,
कदाचित उपेक्षित नहीं.
मील का पत्थर हूँ
ज्ञात-अज्ञात मंज़िलों से बदा 
अभिलेख हूँ ,
सभी के काम आये
वो शिला लेख हूँ.
राह पूछकर चलते बनो 
रुको मत,  
मैं किसी की मंज़िल नहीं, 
न मेरी कोई मंज़िल. 

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