मील का पत्थर हूँ,
किनारे हूँ, किन्तु अन्तस्थ धँसा हूँ
हर मंज़िल मुझसे होकर गुज़रती है.
पथिक! अनभिज्ञ हो तुम
न चाहो, फिर भी
निगाहें ढूंढ़ेंगी
मुझसे मंज़िल का पता पूछेंगी.
मैं त्रस्त नहीं,
अभ्यस्त हूँ,
अभिशप्त हो सकता हूँ,
कदाचित उपेक्षित नहीं.
मील का पत्थर हूँ
ज्ञात-अज्ञात मंज़िलों से बदा
अभिलेख हूँ ,
सभी के काम आये
वो शिला लेख हूँ.
राह पूछकर चलते बनो
रुको मत,
मैं किसी की मंज़िल नहीं,
न मेरी कोई मंज़िल.
किनारे हूँ, किन्तु अन्तस्थ धँसा हूँ
हर मंज़िल मुझसे होकर गुज़रती है.
पथिक! अनभिज्ञ हो तुम
न चाहो, फिर भी
निगाहें ढूंढ़ेंगी
मुझसे मंज़िल का पता पूछेंगी.
मैं त्रस्त नहीं,
अभ्यस्त हूँ,
अभिशप्त हो सकता हूँ,
कदाचित उपेक्षित नहीं.
मील का पत्थर हूँ
ज्ञात-अज्ञात मंज़िलों से बदा
अभिलेख हूँ ,
सभी के काम आये
वो शिला लेख हूँ.
राह पूछकर चलते बनो
रुको मत,
मैं किसी की मंज़िल नहीं,
न मेरी कोई मंज़िल.
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